महिला शिकायत प्रकोष्ठ
महिला शिकायत प्रकोष्ठ (आंतरिक शिकायत समिति)
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन-उत्पीडन (निवारण, प्रतिषेघ और प्रतितोष) अधिनियम-2013 के अध्याय-4 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुपालन में गठित
1 | प्रो. मीरा सरीन | संयोजक |
2 | डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी | सदस्य |
3 | डॉ. सपना गुप्ता | सदस्य |
4 | श्रीमती पूनम शर्मा | सदस्य |
दिनांक 11 जुलाई, 2015 से प्रभावी
संस्थान का विस्तार क्षेत्र
मुख्यालय के अकादमिक विभाग
अध्यापक शिक्षा विभाग
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- प्रशासनिक सदस्य
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- शैक्षणिक कैलेंडर
- समय सारिणी
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- वर्तमान शिक्षण सत्र का विवरण
- पिछले शिक्षण सत्रों का विवरण
- विभागीय गतिविधियाँ
- विभागीय सूचनाएँ
अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग
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नवीकरण तथा भाषा प्रसार विभाग
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पूर्वोत्तर सामग्री निर्माण विभाग
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दूरस्थ (पत्राचार) विभाग
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अनुसंधान तथा भाषा विकास विभाग
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सूचना तथा भाषा प्रौद्योगिकी विभाग
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सांध्यकालीन पाठ्यक्रम विभाग
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केंद्रीय हिंदी संस्थान
भारत सरकार के 'शिक्षा मंत्रालय' (पूर्व नाम - मानव संसाधन विकास मंत्रालय) के अधीन 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' एक उच्चतर शैक्षिक और शोध संस्थान है। संविधान के अनुच्छेद 351 के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी को समर्थ और सक्रिय बनाने के लिए अनेक शैक्षिक, सांस्कृतिक और व्यवहारिक अनुसंधानों के द्वारा हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषाविश्लेषण, भाषा का तुलनात्मक अध्ययन तथा शिक्षण सामग्री आदि के निर्माण को संगठित और परिपक्व रूप देने के लिए सन 1961 में भारत सरकार के तत्कालीन 'शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय' ने 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' की स्थापना उत्तर प्रदेश के आगरा नगर में की थी। हिंदी संस्थान का प्रमुख कार्य हिंदी भाषा से संबंधित शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करना, शोध कार्य कराना और साथ ही हिंदी के प्रचार व प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाना है। प्रारंभ में हिंदी संस्थान का प्रमुख कार्य 'अहिंदी भाषी क्षेत्रों' के लिए योग्य, सक्षम और प्रभावकारी हिंदी अध्यापकों को ट्रेनिंग कॉलेज और स्कूली स्तरों पर शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित करना था, किंतु बाद में हिंदी के शैक्षिक प्रचार-प्रसार और विकास को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने अपने दृष्टिकोण और कार्य क्षेत्र को विस्तार दिया, जिसके अंतर्गत हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषा-परक शोध, भाषा विज्ञान तथा तुलनात्मक साहित्य आदि विषयों से संबंधित मूलभूत वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करना प्रारंभ कर दिया और साथ ही विविध स्तरों के शैक्षिक पाठ्यक्रम, शैक्षिक सामग्री, अध्यापक निर्देशिकाएँ आदि तैयार करने का कार्य भी प्रारंभ किया गया। इस प्रकार के विस्तृत दृष्टिकोण और कार्यक्रमों के आयोजन से हिंदी संस्थान का कार्यक्षेत्र अत्यधिक विस्तृत और विशाल हो गया। इन सभी कार्यक्रमों के कारण हिंदी संस्थान ने केवल भारत में ही नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति और मान्यता प्राप्त की।
हिंदी संस्थान की स्थापना
हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप को समान स्तर का बनाने के लिए और साथ ही पूरे भारत में हिंदी भाषा के शिक्षण को सबल आधार देने के उद्देश्य से 19 मार्च, 1960 ई. को भारत सरकार के तत्कालीन 'शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय' ने एक स्वायत्तशासी संस्था 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' का गठन किया और 1 नवम्बर 1960 को इस संस्थान का लखनऊ में पंजीकरण करवाया गया।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के केंद्र
भारत सरकार द्वारा 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' को 'अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय' को संचालित करने का पूर्ण दायित्व सौंपा गया। 1 जनवरी, 1963 को अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय का नाम बदल कर 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय' कर दिया गया। बाद में 29 अक्टूबर, 1963 को संपन्न परिषद की गोष्ठी में केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय नाम भी बदलकर 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' कर दिया गया। केंद्रीय हिंदी संस्थान का मुख्यालय आगरा में है। मुख्यालय के अतिरिक्त इसके 8 केंद्र हैं -
भारत सरकार ने 'मंडल' के गठन के समय जो प्रमुख प्रकार्य निर्धारित किए थे उन्हें तब से आज तक सतत कार्यनिष्ठा से संपन्न किया जा रहा है।
मंडल के प्रमुख कार्य
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के निर्धारित प्रमुख कार्य हैं-
- हिंदी भाषा के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना ।
- हिंदीतर प्रदेशों के हिंदी अध्ययन कर्ताओं की समस्याओं को दूर करना।
- हिंदी शिक्षण में अनुसंधान के लिए अधिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
- उच्चतर हिंदी भाषा, साहित्य और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी का तुलनात्मक भाषाशास्त्रीय अध्ययन और सुविधाओं को उपलब्ध करवाना।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप का विकास कराना और दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी को अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकसित करने के लिए कार्य करना।
वाणी वन्दना
वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव, अमृत-मंत्र नव,
भारत में भर दे!
काट अंध उर के बंधन-स्तर,
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष-भेद-तम हर, प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद-मंद्र रव,
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!
-पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
देवनागरी हिंदी सहायता
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