उ जो किम
प्रो. उ जो किम का नाम कोरिया में हिंदी की ध्वजा फहराने वाले प्रमुख हिंदी सेवी विद्वानों में एक हैं। मध्यकालीन हिंदी काव्य और आधुनिक भारतीय काव्य तथा साहित्य में इनकी विशेष रुचि है। प्रो. उ जो किम का जन्म 15 दिसम्बर 1953 में हुआ।
कार्यक्षेत्र
प्रो. किम कोरिया की हन्गुक यूनिवर्सिटी ऑफ फारेन स्टडीज में लगभग तीन दशकों से हिंदी का अध्यापन कर रही हैं और वर्तमान में इसी विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन विभाग की विभागाध्यक्ष हैं। आप भारतीय अध्ययन कोरियाई संघ और दक्षिण एशिया अध्ययन संस्थान की अध्यक्ष/निदेशक भी रह चुकी हैं। प्रो. किम ने हिंदी के विकास और प्रसार-प्रचार के लिए अनेक अध्ययन केंद्रों की स्थापना की है। समसामयिक हिंदी साहित्य को वैश्विक परिदृश्य में स्थान दिलाने के लिए ये अध्ययन-अध्यापन, शोध, संगोष्ठी एवं सेमिनार के जरिए सक्रिय हैं।
‘आधुनिक हिंदी कविता में राष्ट्रीय चेतना’, ‘मध्यकालीन हिंदी काव्य’, ‘भारतीय साहित्य का इतिहास’ और ‘हिंदी भाषा का परिचयात्मक पाठ्यक्रम आदि इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
सम्मान एवं पुरस्कार
प्रो. उ जो किम जैसी अप्रतिम हिंदी विदूषी को डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार से सम्मानित करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान गौरव का अनुभव करता है।
संपर्क
Dept. of Indian Studies, Hankuk University of Foreign
Studies, 270, Imun-Dong, Dongdaemun-Gu, Seoul 130-791, KOREA
फोन – 082-10-8910-7275, 82-2-3426-6275
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ली जंग हो
प्रो. ली जंग हो का जन्म जून 1948 में हुआ था। हिंदी के अंतरराष्ट्रीय पटल पर सन 1981 से निरंतर सक्रिय प्रो. ली जंग हो एक ऐसे समर्पित हिंदी शिक्षक का नाम है, जिन्होंने कोरिया में पहली बार हिंदी की ज़मीन तैयार करने का ऐतिहासिक कार्य किया।
कार्यक्षेत्र
वर्तमान में हंकुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरेन स्टडीज़ के हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर-विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत प्रो. हो ने कोरिया में हिंदी के प्रचार-प्रसार की हर चुनौती को पूरी रचनात्मक निष्ठा के साथ स्वीकार किया और कोरियाई छात्रों के लिए हिंदी व्याकरण, कोश, वार्तालाप और साहित्य संबंधी आठ पुस्तकों के अलावा भारतीय लोक कथाओं और बाल कहानियों के अनूदित संकलन तैयार किए। भीष्म साहनी के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘तमस’ का कोरियाई अनुवाद और कोरियाई-हिंदी शब्दकोश का निर्माण आपकी विशिष्ट उपलब्धि के रूप में उल्लेखनीय है।
अपने व्यक्तित्व और कृतित्व में महात्मा गाँधी के कर्मठ आत्मानुशासन और लोकोपयोगी रचनात्मकता की गहराई से प्रभावित प्रो. हो ने महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित एक दर्जन से भी अधिक शोध आलेखों की रचना की है।
सम्मान और पुरस्कार
सन 1996 में ट्रिनिडाड और टुबैगो में आयोजित पाँचवें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी के अंतरराष्ट्रीय प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान के लिए आपको सम्मानित किया गया। हिंदी के अध्ययन-अध्यापन में पिछले 30 वर्ष से निरंतर विनम्र भाव से संलग्न वरिष्ठ विद्वान प्रो. ली जंग हो के महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 'डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार' से सम्मानित करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान गौरवान्वित है।
डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार वर्ष 2008-09
डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार से सम्मानित विद्वान | |||
1. | वर्ष 2008 | डॉ. हरमन वान ओल्फ़न | ![]() |
2. | वर्ष 2009 | प्रो. ली जंग हो | ![]() |
हरमन वान ओल्फ़न
'टेक्सस विश्वविद्यालय' में एशियाई अध्ययन विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. हरमन वान ओल्फ़न का नाम विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में रचनात्मक नवाचारों के लिए विख्यात है। अपने चार दशक से भी अधिक लंबे शिक्षक जीवन में वे लीक से हटकर उद्देश्यपरक और प्रयोगधर्मी शिक्षण क्रियाकलापों के लिए जाने-पहचाने गए हैं।
कार्यक्षेत्र
भाषा शिक्षक के रूप में प्रो. ओल्फ़न का अनुभव बहुआयामी और गत्यात्मक प्रकृति का रहा है। 1974 से 1998 तक विश्वविद्यालय कला संकाय के मीडिया केंद्र में निदेशक पद पर रहते हुए आपने हिंदी शिक्षण में फ़िल्मों और गानों के प्रयोग के ज़रिए आधुनिकीकरण का सूत्रपात किया। 1990 से आठ साल तक 'भारतीय अध्ययन विद्यापीठ' की भाषा समिति के अध्यक्ष के रूप में आपने अमरीकी विद्यार्थियों के लिए भारत में हिंदी-बांग्ला-तमिल-तेलुगु शिक्षण कार्यक्रमों का सफल प्रबंधन किया। आपने हिंदी विद्वानों और सिनेमाकारों के सहयोग से हिंदी शिक्षण की नए उपगमों और प्रविधियों की तलाश एवं विकास का महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसी दैरान आपने प्रथम वर्ष के हिंदी शिक्षार्थियों के लिए तीन खंड़ों में स्तरीकृत पाठ्य पुस्तकें भी लिखीं, जिनका हिंदी जगत ने भरपूर स्वागत किया।
2006 में प्रो. ओल्फ़न हिंदी-उर्दू फ्लैगशिप कार्यक्रम के निदेशक बने। आपके सुयोग्य निर्देशन में अपने डिज़ाइन और उद्देश्यों के लिहाज से यह भाषा-शिक्षण का एक ऐसा क्रांतिकारी क्रार्यक्रम बनकर उभरा, जो भाषा-शिक्षण की अधुनातन प्रविधियों की मदद से स्पष्ट उद्देश्यपरकता के साथ वास्तविक परिस्थितियों में शिक्षार्थियों के भाषा व्यवहार के रचनात्मक कौशल को बढ़ाने में सहायक बनता है।
व्यक्तित्व विशेषता
भाषा शिक्षक के अलावा प्रो. ओल्फ़न के व्यक्तित्व और कृतित्व का भाषा वैज्ञानिक पक्ष भी समानतः महत्वपूर्ण है। वाक्य विज्ञान और विशेषतः हिंदी क्रियापद संरचना के क्षेत्र में आपकी गणना अधिकारी विद्वान के तौर पर होती है। आप मशीन अनुवाद, भाषा प्रयोगशाला और उपकरण विकास से संबंधित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं के सम्मानित विशेषज्ञ सदस्य हैं।
सम्मान और पुरस्कार
हिंदी के अंतरराष्ट्रीय प्रचार-प्रसार और शैक्षणिक संवर्धन के लिए प्रो. ओल्फ़न को डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार से अलंकृत करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान अत्यंत हर्षित है।
शमतोफ़ आज़ाद
प्रो. शमतोफ़ आजाद विदेशों में हिंदी की विजय-ध्वजा फहराने वाले हिंदी सेवी विद्वानों की पहली पंक्ति में प्रमुख हैं। प्रो. शमतोफ़ आज़ाद का जन्म वर्ष 1946 में हुआ।
कार्यक्षेत्र
उज्बेकी, रूसी, तजाकी, अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, फारसी और पंजाबी भाषाओं के जानकार और इनमें से अनेक भाषाओं में मौलिक लेखन करने वाले प्रो. शमतोफ़ के अनेक शोध आलोख और मोनोग्राफ विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित हैं। 'दक्खिनी हिंदी का भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण' हिंदी में उनके लेखन और शोध का केंद्रीय विषय है। इसके अलावा इन्होंने हिंदी की बोलियों पर भी खास काम किया है। ‘क्लासिकल दक्खिनी’ और ‘पास्को में क्लासिकल दक्खिनी की आहट’ इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्होंने हिंदी भाषा विषयक अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं के संपादन कार्य के साथ अनेक उच्च स्तरीय शोध कार्यों में निर्देशक की भूमिका निभाई है।
सम्मान एवं पुरस्कार
प्रो. शमतोफ़ फिलहाल महात्मा गांधी इंडोलॉजी सेंटर के निदेशक तथा ताशकंद स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के दक्षिण-एशियाई भाषा विभाग के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं। इन्हें अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं की सदस्यता भी प्राप्त है। प्रो. शमतोफ़ आज़ाद नसरितदिनोविच को डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार से सम्मानित करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान भाव-विभोर है।
संपर्क
ताशकंद विश्वविद्यालय, उज्बेकिस्तान
फोन – 09869903795, 09619550533
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